सोनवर्षा राज (सहरसा) (एसएनबी): सोनवर्षा प्रखंड क्षेत्र के विषहरा भगवती मंदिर परिसर में आयोजित दो दिवसीय संत काग बाबा ज्ञान-मार्ग का 47 वाँ वार्षिकोत्सव सत्संग समारोह का समापन रविवार के शाम आरती के साथ सम्पन्न हो गया। दो दिवसीय सत्संग समारोह के प्रथम दिन के प्रवचन में आचार्य गुरुवानन्द बाबा ने काग बाबा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोग केवल धन संग्रह में जुटे हुए है। धन से मात्र सुख होता है, धन से तृप्ति नहीं मिलती है, तृप्ति तो स्थिर सुख से होती है। स्थिर सुख अचल है। अचल सुख में रूपान्तरण नहीं होता है, वह सदा सामान रहता है। वह सामान सुख सुखो का सार आनन्द कहलाता है। आनन्द आत्मा के पास रहता है और अर्न्तध्यान से आत्मा की प्राप्ति होती है, जिससे ज्ञान, आनन्द और शांति मिलती है। मनुष्य अज्ञानता में उसे इस क्षणिक संसार में खोज रहा है। ज्ञान के अभाव में बुद्ध को भी राज्य, विश्वसुन्दरी पत्नी और पुत्र से तृप्ति नहीं मिली। इन्द्रियों का केन्द मन है और मन का केन्द आत्मा है। मन में इच्छा होती है, लेकिन आत्मा इच्छारहित है। स्वाभाविक रूप में मन संसार का भोग करता है, संसार खण्ड यानि नाशवान है। नाशवान संसार का सुख नाशवान ही होता है और नाशवान सुख से तृप्ति नहीं होती है सच्चा मार्ग के अभाव में मुनष्य संसार से अतृप्त ही चला जाता है। गति से मन केन्द्र को प्राप्त होता है और केन्द्र गतिहीन होता है। गतिहीन के कारण वह सुख अचल होता है उसे ही आनन्द कहते है। अर्न्तमुखी होने से आनन्द की प्राप्ति होती है यही सच्चा सुख है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को संसारिक सुख के साथ-साथ तृप्ति हेतु अपने अन्दर की यात्रा करनी चाहिए, तभी इच्छा की तृप्ति होगी अन्यथा ज्ञान के बिना संसारिक धन से भरपूर राजा भी अतृप्त चला जाता है। इसलिए पुज्य गुरुदेव संत काग बाबा अपनी वाणी भाग-2 में कहते है धन से सुख नहीं होत है, इच्छा पूर तब सुख । काग बाबा पूरे बिना, धन रहते भी दुख ।
कार्यक्रम के दूसरे दिन संत काग बाबा का आशिर्वाद प्राप्त शिष्य आचार्य पूज्य गुरुवानन्द जी महराज ने प्रवचन देते हुए कहा “मन पर विजय पाने वाला हीं सच्चा वीर है। सारी दुनियाँ मन और ज्ञान में फँस कर नष्ट होने की कगार पर है। मन विकार से भरा है, जबकि ज्ञान निर्विकार है। कर्म का सम्पादन मन से होता है इसलिए मन से किया गया कर्म अशुभ और फल भी अशुभ होता है।” आज अज्ञानता में अपनी रक्षा हेतु सारी दुनियाँ अस्त्र-शस्त्र का भंडार बना लिया है, जो इसके अस्तित्व के लिए खतरनाक साबित हो गया है। परिणामतः सभी को अपनी रक्षा की भय सता रहा है, अब सभी दुख के भय से मुक्त होना चाहते है, इसलिए कुछ क्षण के लिए शुभ बातें उनके मन में आता है, परन्तु उचित राह के अभाव में पुनः भटककर उसी मार्ग पर आकर अटक जाता है। उन्होंने आगे कहा कि दुख से मुक्ति ही आनन्द है। आनन्द विरक्त की स्थिति है, जब मन पर ज्ञान का विजय होगा तभी लड़ाई समाप्त होगी, ज्ञान पर आधारित कर्म होगा गुरु से प्राप्त योग विद्या के द्वारा सच्चा ज्ञान संभव है। संत काग बाबा ज्ञान प्राप्ति हेतु चतुष्पाद साधना (आत्मनिरिक्षण, आत्म संयम, आत्माण्वेषण, आत्मदर्शण) के भेद से प्राप्त होगा। तभी जीवन सफल होगा। उन्होने आगे कहा कि मन की पवित्रता अपने अन्दर की अजयशक्ति दुर्गे पर समर्पण है ताकि उनपर अन्य प्राणियों की बलि अन्यथा मानवीय अहंकार से सभी प्राणियों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। माता-पिता की जीवित सेवा ही सच्चा श्राद्ध है, मृत्योपरान्त कर्म काण्ड करना विदेही मन की हिस्सा है। समयानुसार भोजन, औषधि, वस्त्र, अच्छी वचन से प्रसन्न करना तथा शारीरिक सेवा करना जीवित श्राद्ध है तभी माता-पिता का प्रेम-प्यार मिलेगा आदर्श समाज बनेगा अन्यथा दुसह दुख भोगना पड़ेगा। इस सत्संग समारोह को सफल बनाने हेतु तन, मन, धन देकर मैना के ग्राम वासियों ने जो अहम भूमिका निभाई है उन्हें पूज्य सद्गुरूदेव महाराज का सपरिवार के लिए आशिर्वाद है। कार्यक्रम को सफल बनाने में मां विषहरा भगवती मंदिर के कोषाध्यक्ष चन्द्रदेव यादव, डा विरेंद्र यादव, अनिल कुमार अनल, उमेश यादव, शम्भू यादव, विष्णुदेव पंडित, उपेन्द्र शर्मा, राम प्रवेश, डा आलोक, दिनेश यादव आदि का सराहनीय योगदान रहा।